अखबारों के हर एक कोने मैं किसी की लुटती लाज़ की खबर छपती है,विकृत समाज की खबर छपती है,हर कोई पूछ रहा है दोषी कौन है अगर दोषी मिल जाता है तो कानून से सजा की मांग करता है और इससे जायदा सोचने समझने की कोशिश नहीं करता क्यूंकि हमारे पास इन सब घटनाओ के लिए ज़िम्मेदार कारणों की जानकारी पहेले से ही है जैसे फिल्म,लडकियों के पहनावा और बहुत कुछ ऐसा जिसमे हम लोगो का कोई लेना देना नहीं होता हम सिरे से इन सब घटनाओं की ज़िम्मेदारी लेने से भागते है क्यूंकि पुरुष प्रधान समाज कैसे किसी पुरुष के खिलाफ कारवाही करे ,किसी लड़की का यौन शोषण हो तो कही पंचायत लडकियों के जीन्स पहनना,मोबइल इस्तमाल करने मैं प्रतिबन्द लगा देता है,समाज और जंगल का फर्क यही समझ आता है अदि जंगली जानवर इन्सान का शिकार करने लगे तो उसे मार दिया जाता है पर हमारे समाज में कोई दरिंदा हो कर किसी महिला का शोषण करे तो समाज उस महिला को पहले सजा देती है उसके चरित्र पर टिप्पणी कर,हमारे घर मैं भी दो तरह से लालन –पालन होता है लडकियों के लिए सीमायें तय है लडको के लिए नहीं हम समाज को आदर्श नारी देना चाहते है लड़की अच्छी –बुरी होती है लड़के हर तरह से स्वीकृत है इसी तरह की मापदंड की निति एक को दब्बू और दुसरे को उदण्ड बनती है,क्यों नहीं हम ऐसे लोगो का समाजिक स्थर पर बहिष्कार करे जो दरिंदगी की हद को पर करने की कोशिश करे.
Everyone does have a book in them. Here is few pages of my life, read it through by my stories,poetry and articles.
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अपनी खुशियां को पहचानो -दीपक कुमार
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