Monday, July 7, 2014

पिया

बंद दरवाज़ा देखकर
लौटी है दुया
आंख खुली तो जाना ख्याव और सच है क्या?

धीमे-धीमे दहक रहे है,आँखों में
गुजरे प्यारवाले पल
राख हो कर भी सपने
गर्म है
बुझे आच की तरह

बर्फ में जमे अहसास
मानो धुव में ठहरे
दिन –रात की तरह

चुपी ओढे बैठी
चहरे पर सजाए मुस्कराहट
प्यार का मोती खोया
मन की गहराईयों में जाने कहा ?

No comments:

Post a Comment

Thanks for visiting My Blog. Do Share your view and idea.

मेहरम

चुप ने ऐसी बात कही खामोशी में सुन  बैठे  साथ जो न बीत सके हम वो अँधेरे चुन बैठे कितनी करूं मैं इल्तिजा साथ क्या चाँद से दिल भर कर आँखे थक गय...