Friday, October 31, 2014

तेरे ही आँखों में पाया था जहान सारा


तेरे ही आँखों में पाया था
जहान सारा
जैसे भटके हुए नाव को
मंजिल का सहारा


राते अँधेरी सी थी
तू बन के जुगनू सा जला
तपते थे दिन मेरे
तू था ठंडी फुहार लिए

तेरी ही आँखों में देखा था
जादू से भरी दुनिया का सच,झूठ से भी परे
ज़िन्दगी का नज़ारा

मेरे हर रास्ते का मंजिल तू
तुझे चाहते रहना कुछ ऐसा
जैसे हर रात टूटते तारो को ताकना और गिनना

चार दिनों की छोटी ही कहानी थी प्यार की
तेरा देखना और मेरा खो जाना
जैसे घर से बहार गए मुसाफिर का
दुबारा लोट कर न आना

राह देखता आंगन
खुला दरवाज़ा
कहा रहे हो
तेरी ही रंग से भरा है
मेरा खाली मन सारा
तेरे ही आँखों में पाया था
जहान सारा



रिंकी

मेहरम

चुप ने ऐसी बात कही खामोशी में सुन  बैठे  साथ जो न बीत सके हम वो अँधेरे चुन बैठे कितनी करूं मैं इल्तिजा साथ क्या चाँद से दिल भर कर आँखे थक गय...