Monday, October 23, 2017

दोस्तों, आह! जिंदगी पत्रिका में मेरे द्वारा लिखित अनुभव “मानवता और मजहब” को प्रकाशित किया गया है, आपके सहयोग के लिए धन्यवाद्I

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मेहरम

चुप ने ऐसी बात कही खामोशी में सुन  बैठे  साथ जो न बीत सके हम वो अँधेरे चुन बैठे कितनी करूं मैं इल्तिजा साथ क्या चाँद से दिल भर कर आँखे थक गय...