Wednesday, December 26, 2018

नए वर्ष में नई पहल हो

नए वर्ष में नई पहल हो।
कठिन ज़िंदगी और सरल हो।।
अनसुलझी जो रही पहेली।
अब शायद उसका भी हल हो।।
जो चलता है वक्त देखकर।
आगे जाकर वही सफल हो।।
नए वर्ष का उगता सूरज।
सबके लिए सुनहरा पल हो।।
समय हमारा साथ सदा दे।
कुछ ऐसी आगे हलचल हो।।
सुख के चौक पुरें हर द्वारे।
सुखमय आँगन का हर पल हो।।

Saturday, December 22, 2018

Traditional knowledge is the most effective method to deal with the disaster


Climate change terminology is widely heard from the many scholars and scientist
The impact of climate change would be long term and irreversible. Worldwide people started demonstration against the companies which action has potential to harm the environment and adds in climate change.

The major impact of climate change is going to be more on under developed countries it would severely impact the livelihood pattern globally which causes huge distress migration and unrest. Climate change is impact of hundred years’ long industrialization and deforestation. I think that, only climate change is not responsible for disaster. Community traditional knowledge and skill in mitigation of disaster has been overlooked and not even consider by the government, development organization and even by the community.

Whenever, I met and discuss with the disaster affected community. It comes up clearly that the behavior and practice for disaster preparedness in community has changed.  The community  which has access to government schemes and services have become fully depend on the government for disaster preparedness plan, relief and recovery, the  dependent community faced destruction in any kind of the disaster. Traditional practices and disaster preparedness methods were the   important part of the community which used to be deal with disasters and also in mitigation of the risk of the disaster. Nowadays,   government and development agencies seem as an only stakeholder responsible for dealing with the disaster preparedness and responses, the Community knowledge no matter. 
Here are few statements of disaster affected community

Statement 1- Our ancestors used to say “never live near to the sea”  the  road constructed around Island  along with the sea, So we made home near the sea. Now everything washed away in Tsunami. ( Andaman & Nicobar Island, India)

Statement 2 – There was protest against construction of embankment on the river. people knew that preventing flow of monsoon water will raise level of river and it might causes flood in the villages which are within  the embankment and also dangerous for the villages which are nearer to the embankment.( Bihar, India)

Statement 3- Floods regularly occur in our area, so we have our traditional way to handle it, before monsoon, we all villagers collect money and utilize it to maintenance the embankment, if we depend on others, which can be dangerous for our future. ( Bihar, India)

Statement 4: Flood is good for us because in flood it is easy to travel on dongi   (small boat) but in dry days travel by road is difficult. Flood brings fertilize soil with it. (Bihar, India)

Statement 5:  It had been seventy years, our village did not face such kind of flash flood, and new generation doesn’t have skill to deal with the situation. That why community is fully dependent on government and other people. ( Bihar, India)

Statement 6:  Every year River ( Brahamaputra) takes away our land, that’s why we build house from local easily available material. Whenever flood alert announced we shift our house to safe places.  (Assam, India)

Community knowledge is the most trusted and reliable method to deal with the disaster is an asset for any country, because community skill and knowledge helps them to be safe and also reduce dependency on the stakeholders like government and development agencies. I would like to hear from all of you. What is your experience regarding the traditional knowledge and skill of community. Whether it worth to carry forward or traditional knowledge should be forgotten?

Share you experience and word.



Sunday, December 16, 2018

गिरना भी अच्छा है

गिरना भी अच्छा है
“गिरना भी अच्छा है,
औकात का पता चलता है…
बढ़ते हैं जब हाथ उठाने को…
अपनों का पता चलता है!
जिन्हे गुस्सा आता है,
वो लोग सच्चे होते हैं,
मैंने झूठों को अक्सर
मुस्कुराते हुए देखा है…
सीख रहा हूँ मैं भी,
मनुष्यों को पढ़ने का हुनर,
सुना है चेहरे पे…
किताबो से ज्यादा लिखा होता है…!”

Thursday, December 6, 2018

पहले प्यार की याद


पहले प्यार की याद
चुभते है शूल की तरह
वो प्यार जिन्दा है आज भी
पत्थर में खीचें लकीर की तरह

प्यार होने या न होने मे
फर्क बस इतना था
जब वो था तो,मैं नहीं था
जब मैं था वो नहीं

प्यार के देहलीज के लकीर पर
हम दोनों खड़े रहे
सुबह से शाम तक परछाई बदली
हम खड़े रहे ठुठे पेड़ की तरह

मौसम बदले
हम खड़े रहे
समाज की तरफ देखते
उनकी सहमति के लिए

आज हम दोनों टकरा गए
आमने-सामने
अजनबी सा चेहरा लिए

Rinki



Tuesday, December 4, 2018

सब कुछ सिमट गया


दुनियाँ की समझदारी सीखी थी
तन बलवान और माथा नर्म
दुनिया जीत लेने का उमंग
तभी बुढ़ापे ने दस्तक दी
सब कुछ सिमट गया

जवानी दौड गुजारी थी
रात दिन सब एक किया
अच्छा, बुरा सब भूलकर
घर को ही बाज़ार बनाया था
तभी बच्चे  बड़े होगए
सब कुछ सिमट गया

गर्म हवाओ से राहत थी
शाम ठंडी और सुबह गर्म
मन के भीतर नयी उमंग
तभी ठण्ड ने सब कुछ
अपने में सिमट लिया


मेरा-मेरा करते थे
एक  रात मेरा शारीर
मेरा न रहा
एक पल में सब कुछ
सिमट गया

रिंकी


Friday, November 23, 2018

जलवायु परिवर्तन का मानव जीवन पर प्रभाव

  
हर वर्ष अन्तरराष्ट्रीय पर्यावरण दिवस मनाया जाता है जो केवल देखावा मात्र या खाना पूर्ति के लिए होता हैजलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC)  2018  के अनुसार दुनिया का तापमान बहुत तेजी से बढ रहा है। 2030 से 2052 के बीच ग्लोबल वॉर्मिंग( भूमंडली उष्मिकरण) के कारण पृथ्वी का तापमान 1.5 डिग्री सेल्यिस तक बढ़ सकता है। भारत के लिए चिंता की बात यहाँ है की वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक २०१८ के अनुसार भारत का नाम  विश्व के उन देशो में शामिल है। जिन्हें जलवायु परिवर्तन के कारण सबसे अधिक नुकसान पहुँच सकता है। पिछले वैश्विक जोखिम सूचकांक २०१६ के अनुसार भारत का स्थान दस सबसे आपदा ग्रसित देशों में शामिल था
इस रिपोर्ट के प्रमुख संदेशों यह है कि ग्लोबल वार्मिंग के मात्र 1 डिग्री सेल्सियस तापमान के कारण हम पहले से ही मौसम में उतार-चढ़ाव, समुद्र का बढ़ता जल-स्तर और आर्कटिक बर्फ के गायब होने जैसे दुष्प्रभावों का सामना कर रहे हैं। यदि विश्व का तापमान ऐसे ही बढ़ता रहा तो प्राकृतिक अपदाओ की संख्या में बढ़ाव आएगा। जलवायु परिवर्तन को आसान भाषा में समझना बहुत जरूरी है। आम व्यक्ति के लिए ये कोई ऐसी चीज़ है जिससे उनका कोई लेना देना नहीं है। जलवायु परिवर्तन जैसे हमारे जीवन में कोई महत्त्व नहीं रखता है,जो की बुलकुल भी सही नहीं है। विज्ञान के अनुसार जलवायु परिवर्तन मानव के ईंधन के इस्तमाल और धरती के पर्यवरण को नुकसान पहुचने के कारण ही हुआ है।
जलवायु परिवर्तन क्या है?
जलवायु परिवर्तन का मतलब मौसम में आने वाले व्यापक बदलाव से है। पृथ्वी के  चारो ओर ग्रीन हाउस की एक परत होती है, इन गैसों में कार्बन कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड शामिल हैं वैज्ञानिकों का मानना है कि हम लोग उद्योगों और कृषि के जरिए जो गैसे वातावरण में छोड़ रहे हैं (जिसे वैज्ञानिक भाषा में उत्सर्जन कहते हैं), उससे ग्रीन हाउस गैसों की परत मोटी होती जा रही हैये परत अधिक ऊर्जा सोख रही है और धरती का तापमान बढ़ा रही है. इसे आमतौर पर ग्लोबल वार्मिंग या जलवायु परिवर्तन कहा जाता है गैसों के उत्सर्जन के लिए मुख्य तौर पर कोयला, पेट्रोल और प्राकृतिक गैसों को जिम्मेदार माना जाता है।
2015 के ग्लोबल वार्मिंग पर पेरिस समझौते में यह तय किया गया था की 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान को काम करना का प्रयास किया जाए फिलहाल, दुनिया 2015 के पेरिस समझौते के घोषित उद्देश्य के अनुसार,2 डिग्री सेल्सियस से अधिक वृद्धि को रोकने के लिये प्रयास कर रही है। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिये, 2010 के मुकाबले ग्रीनहाउस गैस स्तर को 2030 तक मात्र 20 प्रतिशत कम करना है और वर्ष 2075 तक कुल शून्य उत्सर्जन स्तर का लक्ष्य प्राप्त करना है। 

जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC)  2018 की इस रिपोर्ट के मुताबिक उत्सर्जन को कम करके 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को पूरी तरह से प्राप्त करना असंभव हो गया है।इस रिपोर्ट के मुताबिक, उत्सर्जन की वर्तमान दर यदि बरकरार रही तो ग्लोबल वार्मिंग 2030 से 2052 के बीच 1.5 डिग्री सेल्सियस को भी पार कर जाएगा।
जलवायु परिवर्तन के परिणाम
रिपोर्ट के अनुसार यदि पृथ्वी का तापमान , 1.5 डिग्री सेल्सियस बडा तो दुनिया में समुद्र के जल-स्तर में वृद्धि होगी समुंद किनारे बसे शहर जैसे मुंबई और कोलकता समुंद में समा सकते है  
मौसम के चक्र में परिवर्तन, गर्मी में बढ़ोतरी
वर्षा में वृद्धि और सूखे तथा बाढ़ की आवृत्ति में वृद्धि, अधिक गर्म दिन एवं ग्रीष्म लहर, अधिक तीव्र उष्णकटिबंधीय चक्रवात, महासागर की अम्लीयता और लवणता में वृद्धि होगी। मौसम के बदलाब के कारण मानव के जीवन पर बहुत अधिक असर पडेगा।
तटीय राष्ट्रों और एशिया तथा अफ्रीका की कृषि अर्थव्यवस्था सबसे ज़्यादा प्रभावित होगी। फसल की पैदावार में गिरावट, अभूतपूर्व जलवायु अस्थिरता और संवेदनशीलता 2050 तक गरीबी को बढ़ाकर कई सौ मिलियन के आँकड़े तक पहुँचा सकती है। 
समुद्री जल-स्तर में प्रति दशक 1 सेमी की वृद्धि दर्ज की गई है। मॉनसून की तीव्रता के साथ हिमखंडों का त्वरित गति से पिघलना हिमालयी क्षेत्रों में प्राकृतिक आपदाओं का कारण बन सकता है। 
गत बीस सालो से प्राकृतिक अपदाओ की संख्या बहुत बढ़ गई है, पूरी दुनिया में महा विनाश जैसे स्तिथी बनी हुई है इन सब अपदाओ का सीधा संबंध जलवायु परिवर्तन से है।  दुनिया के कई देशो में कृषि और उत्पादन में बदलाब देखा जा रहा है अदि पृथ्वी का तापमान 1.5 डिग्री भी बढ़ा तो गेहू और चावल जैसे मुख्य अनाज पर सबसे जायदा असर होगा। 
मत्स्य व्यवसाय जो कृषि के बाद दूसरा सबसे बड़ा व्यवसाय है खतरे में आ जाएगा। अनाज, पानी और रोज़गार पर खतरा बढ जाएगा, जिसके परिणाम स्वरुप युद्ध जैसी स्तिथि बन सकती है
पर्यवरण सुरक्षा और सरकार
भारतीय संविधान पर्यवरण सुरक्षा को लेकर बहुत सचेत है, आर्टिकल 48 A के अंतर्गत
राज्य से अपेक्षा की गई है की वह पर्यवरण के संरक्षण और सुधार तथा देश के वनों व वन्य जीवो के प्रति जिन्मेदारी निभाए। अनुछेद 51A (G) कहता है की  जंगल, तालाब, नदिया, वनजीव सहित सभी तरह  की प्राकृतिक पर्यवरण की सुरक्षा और बढ़ावा देना हर भारतीय नागरिक की जिम्मेदारी होगी।


जलवायु परिवर्तन को काम करने के फायदे
समुद्री जल-स्तर की वृद्धि दर में कमी।
 खाद्य उत्पादकता, फसल पैदावार, जल संकट, स्वास्थ्य संबंधी खतरे और आर्थिक संवृद्धि के संदर्भ में जलवायु से जुड़े खतरों में कमी की संभावना।
 आर्कटिक महासागर में समुद्री बर्फ के पिघलने की दर में कमी। 

ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर सीमित करने के अनुमानित तरीके
§  वैश्विक रूप से कार्बन डाइऑक्साइड को कम करने के लिये अर्थव्यवस्था के कार्बन डाइऑक्साइड-गहन क्षेत्रों में कम कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित करने वाली तकनीक, ऊर्जा दक्ष मशीनों और कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषकों को शामिल करना होगा।
§  जंगल और पेड़ो की सुरक्षा से पर्यवरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को नियंत्रण में रखा जा सकता है।
§  यातायात के लिए सावर्जनिक साधनों के इस्तमाल, व्यक्तिगत वाहनों के कम इस्तमाल से प्रदूषण को कम किया जा सकता है
§  बिजली से चलनेवाले उपकरण फ्रिज, टीवी,वास्गिंग मशीन, मोबाइल और अदि का कम इस्तमाल से भी कार्बन उत्सर्जन को कम किया जा सकता है।
§  शाकहारी भोजन को अपनाकर और मासाहार को कम कर भी जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद की जा सकती है, क्यूंकि जानवरों को पालने के लिए अधिक पानी और खाने के आवश्कता पड़ती है, सब्जी उगाने के लिए जल प्रबंधन के  उपयोग से पानी की खपत को कम किया जा सकता है।
§  स्थानीय बाज़ार में मिलने वाली वस्तुओ को खरीद के भी हम जलवायु परिवर्तन को कम करने में सहयोग कर सकते है, जैसे पाम आयल को उगाने के लिए इंडोनेशिया जैसे देशो के जंगल को कटा जा रहा है, अदि हम स्थानीय उपलव्ध चीजो का इस्लामल करेगे तो देश की अर्थव्वस्थ में भी योगदान देगे और बड़े उद्यगो के द्वारा पर्यवरण के नुकसान को भी कम कर सकते है।
हमारे छोटे-छोटे प्रयास, जैसे पैदल चलना, टीवी कम देखना अदि भी जलवायु परिवर्तन की रफ़्तार को धीमा कर सकता है। याद रखे पृथ्वी की पर्यवरण की रक्षा कर के ही हम अपने आनेवाले भविष्य की रक्षा कर सकते है।

Rinki Raut


Monday, November 19, 2018

Universal Children Day


Every year November 14 to November 20 is globally commemorated as Child Rights Week as advocacy pursuance to strengthen efforts and voices aimed at promotion and protection of children’s rights. The week long commemoration commences with celebration of Children’s Day on 14th November and concludes on 20th November, which happens to be International Children’s Day. This seven day commemoration primarily reiterates importance of UN Convention on the Rights of the Child (UNCRC) stipulations. The UN Convention on the Rights of the Child (UNCRC) protects children’s rights by setting standards in health care; education; and legal, civil and social services.

 

This is humble a request to all kindly do not employee child labor at home and never buy any product or take service from the vendor who employee child labor.



Every child has Right of happy  and fruitful life.


Thursday, November 1, 2018

याद

कैसे कहूँ कि 
किसकी याद आई?
चाहे तड़पा गई।

याद उमस 
एकाएक घिरे बादल में
कौंध जगमगा गई।

भोर की प्रथम किरण फीकी :
अनजाने जागी हो
याद किसी की

अज्ञेय

साभार- कविताकोश

Monday, October 15, 2018

शक्ति और स्त्री

दुर्गा का पर्व

स्त्री शक्ति का पर्व
भक्ति का पर्व

लज्जित होती

औरत हर रोज
तार-तार है


माँ कहते हो
मूर्ति को पूजते हो
पाखंड क्यों?

हत्या बेटी की
गर्भपात कराते
पापा करते

बलात्कार है
अत्याचार है यहाँ
आराधना क्यूँ ?

असफल है
पाखंड तुम्हारा.. हां
सिर्फ शोर है

अधिकार दो
शिक्षा का अवसर
जीने का मौका

शक्ति की पूजा
स्त्री का सम्मान
वरदान है



रिंकी


Wednesday, October 10, 2018

A step towards protection of girls


Her eyes are on the wall clock, staring it. She watches time on her wristwatch. Dipti, aren’t you getting late, yes mom, I am leaving right now, she covered her face with stole wanted to hide her face completely in it.  She looked at the street; some people were busy in their own stuff. She thought will these people help her?  If she needs, She started taking the long step to reach the bus stand finally she managed to get the bus.
In the evening she is solving the examination paper, how was the paper? How many marks you would be able to score this time? Well, mom exam was good. I attended all question, may be this time I will score high marks, but ………… she replied. Yes this time you have to make it otherwise you know dad will get angry.
The morning is new but same strange fear and emotion on her face. Go you are late, okay mom. She waved her hand.  The yard looks horrible and scary but she brought courage and aboard in bus. She is sitting in front of a police officer, well done! You are a courageous girl, I have ever met, and your complaint has been logged.  Hey Dipit, Why are you in police station, Is everything fine?
Yes, Mom, I wanted to tell you but, afraid of locked at home and gets punishment without any crime .What are you talking about, please tell me? The few of boys were harassing and teasing me, they stand on the corner of the street and every time pass comment on me. I wanted to tell you but I also know that, If I raise voice. It’s only me who will be blame for everything and you and Dad ask   me to stay at home in sake of my safety. It would be good strategy to be safe for a moment but not good for life.
You all wanted me to score good marks in examination but did not teach me how to stand for self. Please help and teach me the skill to become empower to handle any problem in my life. What if I scored highest mark in academics but fail in my life?
That is why I decided to step forward to solve the problem instead of running away from it.
This incidence may full you with pride and happiness but In India, a according to the National Crime Records Bureau of India, reported incidents of crime against women increased 6.4% during 2012, and a crime against a woman is committed every three minutes.
This is the fact figure of the crime, reasons are known for the crime, but no blueprint to prevent it. Government has its own agenda but civil society also become blind towards the issues, most of the organization focusing on the only issues for which they get the fund. Nowadays funder decides the rational of the problem. Indian social societies do not want to do anything for social issues.

Rinki

Monday, October 1, 2018

रास्ते बदल गए

दोस्ती,नाराज़गी और दिल्लगी
ये सारे अहसास बदल गए
जो भी मेरे करीब थे
वो सब दूर चले गए

रिश्ते जो ज़िन्दगी के सफ़र में बने थे
वो अपनी मंजिल पर पहुँच गए
रंजिश और नफरत किससे करें अब
जो दुश्मन थे
आज कही दूर चले जाए

यूँ तो दोस्तों से मिलना बिछड़ना
अकसर लगा रहता है
उनके चले जाने से लगा
आज कोई अपना खो गया

रास्ते बदलते ही
नज़र भी बदल गई उनकी
हम सोच ही रहे थे
वो अपनी राह चले गए





रिंकी




Sunday, September 23, 2018

ज़िन्दगी और नजरिया


बात–बात पर परेशान होना आज का फैशन है I हम सब अपनी-अपनी परेशानियों से परेशान है I  एक अजीब कहावत है, “ जिंदा है तो परेशान है”  इसका मतलब समझे तो परेशान या टेंशन में रहना ज़िन्दगी के लिए बहुत जरूरी चीज़ है, इसी लत की मैं भी मारी हूँ हर बात पर  परेशान होना मिज़ाज बन गया है I  उस दिन हरे-हरे खेतो,तालाब और नहर देखकर  मन के भीतर तक शकुन मिल रहा था, इसलिए भी की गाँव जिससे मेरा बचपन जूडी था फिर से मेरे नजर के सामने था I बात सिर्फ आँखों तक ही नहीं रह गई थी, मिट्टी,पानी.फसल, जानवर और इन्सान की खुशबू सब अपने से लग रहे थेI

इलेक्ट्रिक रिक्शा  यानी हवा-हवाई अपने ही रफ्तार से चली जा रही हैI मैं अपने आँखों में, फेफड़ों में और दिमाग में सब कुछ कैद करने की कोशिश में थी I  दूर से रेल की आवाज़ सुनाई देती है, जल्दी चलो भाई ये ट्रेन नहीं छूटनी चाहिए ये सुनते ही मेरी परेशानी अचानक मुझ पर हावी हो गई  ड्राइवर ने कहा- सर नहीं छुटेगी में हूँ न, ट्रेन नजदीक आती दिखाई दे रही थी I मैं बाहर से शांत पर अन्दर से परेशान सब सुन और देख रही थी

ड्राइवर ने  कहा - ये भाभी तुम क्यूँ बाज़ार आई, लड़का कहा है?  अब कौन सा पैदल चल कर बाज़ार जाना है, गाड़ी पकड़ो और चले आओ- महिला ने  जवाब में कहा I

 ट्रेन कुछ धीमे रफ्तार से आगे बढ़ रही है पर मैं अभी भी स्टेशन से कुछ दूर थी , परेशानी अब घबराहट में बदलती जा रही थी I रोक न जरा महिला ने कहा, बहुत आगे आ गए हम  और ड्राइवर ये कहते हुए हवा –हवाई को पीछे करने लगा I अब मुझे गुस्सा आने लगा, यहाँ ट्रेन छुटने वाली है और ये भाभी से रिश्तेदारी निभा रहा है लगभग १०० मीटर पीछे जा कर गाड़ी रुकी I महिला ने कहा दीदी जरा पैर हटाई, मुझे लगा कोई समान होगा मेरे पैर के पीछे मैंने पैर एक तरफ किया,

वो सीट से उतर कर पैर रखने वाले जगह पर बैठ गई, नीचे उतारते ही अपने हाथ के सहारे अपने शरीर को आगे की तरफ घसीटने लगी, उसके लिए ये चलना था I अपने कमर से नीचे बेजान हिस्से से चले हुए वो अपनी मंजिल पर पहुँच गई

 ट्रेन की आवाज़ और सामने का दृश्य मेरे अन्दर बहुत देर तक ठहरा रहा I



रिंकी


Saturday, September 15, 2018

अपनी भाषा

हिन्दी भाषा को
बोलने में लज्जाते
शर्म करते

विदेशी बोली
की गुलामी बजाते
शरमाते वो

तिरस्कार
मिले उसे जो बोले
हिंदी भाषा को

गुलामी  शौक
अंग्रेजी बतियाते
नाज़ करते

सम्मान करो
देश महान करो
भाषा अपनी

हिंदी महान
हिन्दुतान की शान
हिंदी महान



रिंकी


Sunday, September 2, 2018

‘आज्ञाकारिता’

आज्ञाकारिता जड़ों को काटना और फिर पेड़ के बढ़ने की उम्मीद करने जैसा है.
जापान में चार- पांच सौ साल पुराने पेड़ होते हैं मगर केवल छह इंच उंचे. इस प्रकार के पेड़ तैय्यार करना भी एक तरह की कला मानी गई है. पर मेरे लिए सीधे तौर पर यह एक हत्या है. माली के कई पीढ़ियां उन पेड़ो को इस अवस्था में रखती आ रही है. अब भले ही यह पेड़ पांच सौ साल पुराना है मगर आप उनकी टहनियों को देख सकते हैं भले ही वह छोटा है. यह एक प्रकार का छोटा बूढ़ा आदमी है जिसके उपर पत्तियां लगी है, जिसकी टहनियां है और शाखाएं है. इसमें जो प्रक्रिया इस्तेमाल हुई है उसके अनुसार वो बिना पेंदी के मिट्टी के बर्तन में पेड़ लगाते हैं और उसके बाद वो उसके जड़ को लगातार काटते रहते हैं. जब भी जड़ बाहर निकलता है और जमीन की ओर बढ़ने की कोशिश करता है, वे उसे काट देते हैं. वो पेड़ों के साथ कुछ भी नहीं करेंगे, बस उनकी ज़ड़ों को काटते रहेंगे.
अब पांच सौ सालों तक एक परिवार इसकी जड़ों को काटता रहेगा. यह पेड़ हजारों साल तक जिंदा रह सकता है पर इसपर कभी फूल या फल नहीं लगेंगे. यही सब पूरी दुनिया में सभी लोगों के साथ हो रहा है. हर चीज के लिए उनकी जड़ शुरूआत में ही काट दी जाती है. जैसे हर बच्चे को आज्ञाकारी होना चाहिए. यह तय कर आप उसकी जड़ को काट रहे हैं. आप उसे सोचने का एक मौका नहीं दे रहे हैं कि वह आपको हां कहे या ना कहे. आप उसे सोचने की इजाजत नहीं दे रहे. आप उसे खुद के बारे में फैसला लेने की इजाजत नहीं दे रहे.
आप उसे जिम्मेदारी नहीं दे रहे बल्कि खुबसूरत शब्द ‘आज्ञाकारिता’ का प्रयोग कर उससे जिम्मेदारी छीन रहे हैं. आप एक सरल रणनीति के तहत यह जोर डालकर कि वह बच्चा है और कुछ नहीं जानता, उसकी स्वतंत्रता, उसका व्यक्तित्व उससे दूर कर रहे हैं. माता-पिता यह तय कर लेते हैं कि बच्चे को पूरी तरह आज्ञाकारी बनना है. उनके अनुसार आज्ञाकारी बच्चा ही सम्मान पाता है. लेकिन इतना निहित है कि आप उसे पूरी तरह से नष्ट कर रहे हैं. उसकी उम्र बढ़ती जायेगी मगर उसका विकास नहीं होगा. वह बड़ा होगा पर उसमें फूल नहीं लगेंगे, फल नहीं होगा. वह जीवित रहेगा लेकिन उसके जीवन में थिरकना नहीं होगा, गीत नहीं होगा, हर्सौल्लास नहीं होगा. आपने वो सभी आधारभूत संभावनाएं नष्ट कर दी हैं जो एक आदमी को व्यक्तिगत, सच्चा, ईमानदार बनाता है और उसे एक निश्चित पूर्णता देता है. और यही सब वह है जो एक आज्ञाकारी व्यक्ति करता है. यह अपंगता है कि आप ना नहीं कह सकते और आपको सिर्फ हां कहना है. पर एक आदमी जब ना कहने में असमर्थ हो जाता है तो उसका हां कहना अर्थहीन हो जाता है. वह एक मशीन की तरह काम कर रहा है. आपने एक इंसान को रोबोट में बदल दिया है.
इस दुनिया में आजाद रहना, खुद के बारे में सोचना, अपनी चेतना से निर्णय लेना, अपने विवेक से काम करना इन सब को लगभग असंभव बना दिया गया है. चर्च, मंदिर, मस्जिद, स्कूल, विश्वविद्यालय, हर जगह आपसे आज्ञाकारी होने की उम्मीद की जाती है. अब तक अपनाए नियम नें लोगों को इस तरह से बर्बाद किया है कि वह पूरा जीवन हर तरह के अधिकार की गुलामी कर दासों जैसा रहता है. उसके जड़ों को काट दिया गया है ताकि उसके पास लड़ने के लिए प्रर्याप्त ऊर्जा ना हो और वह आजादी, व्यक्तित्व या किसी भी प्रकार का अधिकार पा ना सके. तब उसके पास जीवन का एक छोटा हिस्सा होगा जो कि उसे तब तक जीवित रखेगा जब तक मौत उसे इस दासता से मुक्त नहीं कर देती जिसे उसने जीवन समझ कर अपनाया था. बच्चे माता- पिता के गुलाम होते हैं, पत्नियां गुलाम होती हैं, पति गुलाम होते हैं, बूढ़े लोग जवान लोगों के गुलाम होते हैं क्योंकि उनके पास सारी ताकतें होती है.
अगर आप अपने चारो ओर देखें तो पता चलता है की हर व्यक्ति दासता में जीवन व्यतीत कर रहा है. अपने जख्मों को सुदंर शब्दों में छिपा रहा है. जड़े तभी मजबूत होंगी जब हम जो हम करते आ रहें हैं, अगर उसे करना बंद कर दें. अब तक जो करते आ रहे हैं, केवल उसका उल्टा करें. हर बच्चे को सोचने का मौका दिया जाना चाहिए. हमें उसे उसकी बौद्धिकता को तेज करने में मदद करनी चाहिए. हमें उसे परिस्थिति और अवसर देने में मदद करनी चाहिए जहां वह खुद के बारे में स्वंय निर्णय ले सके. हमें इसे एक बिंदु बनाना चाहिए कि किसी को भी आज्ञाकारी बनने के लिए जोर ना डाला जाए और हर किसी को आजादी की बागवानी और खुबसूरती सिखाई जाए. तभी जड़ मजबूत होगी.
ओशो

मेहरम

चुप ने ऐसी बात कही खामोशी में सुन  बैठे  साथ जो न बीत सके हम वो अँधेरे चुन बैठे कितनी करूं मैं इल्तिजा साथ क्या चाँद से दिल भर कर आँखे थक गय...