Friday, January 26, 2018

झंडा

आन मान शान  देश का झंडा
आज है महान झंडा
हर किसी के हाथ में
सुशोभित तिरंगा


कल ऐसा नहीं होगा
हर तरफ बिखरा होगा
फटा–टूटा झंडा


देश की गरिमा को
धूमिल न करना
रखना सम्हाल
तिरंगा



रिंकी

Wednesday, January 24, 2018

प्रेम परीक्षा


कहत कबीरा प्रेम जैसे लम्बा पेड़ खजूर
चढ़े तो प्रेम रस मिले
गिरे तो चकनाचूर

प्रेम जैसे अग्नि परीक्षा
जो पार न किया तो खाक
पार कर जाने पर भी वनवास

प्रेम धागा कच्चा सा
पिरोए मोती तो टूट जाए
बधे कलाई पर तो
अटूट विश्वास सा बंध जाए


Rinki


Sunday, January 21, 2018

Tuesday, January 16, 2018

ब्लॉगर और अपरिचित लेखको के रचना को “कचरा साहित्य” के नाम से पहचाना जाता है..


साहित्य बहुत व्यापक और विस्तृत शब्द है, एक विशाल समुंदर के समान जिसकी गहराई और छोर नापना कठिन है वो हर इन्सान जो लिखने में रुचि या कहे लिखने की हिम्मत रखता है,वो हिंदी साहित्य में अपना छोटा सा योगदान देना चाहता है या हिस्सा बनना चाहता हैA कुछ दिनों पहले साहित्य की गरिमा को धूमिल करने वाला एक नया शब्द से मेरा परिचय हुआ “ कचरा साहित्य “ ये वो शब्द है जिसे शब्दकोश में ढूँढना बेवकूफी होगी इस शब्द का मतलब जानने के लिए गूगल बाबा के शरण में जाना होगा तब भी शायद ही कचरा साहित्य का ठीक मतलब मिल पाए A

इसे ऐसे समझा जा सकता है, वो तमाम शौकिया या कहे मजबूर लेखक बिलकुल मेरे और आपके तरह जिनके पास ऐसा कोई प्लेट फार्म/स्थान उपलब्ध नहीं है, जहाँ वो अपनी लिखी हुई रचना कविता,कहानी,लेख और विचार को समाज से साझा कर सके, क्योंकि हम जैसे लोग भारत के गली-कुचो में रहते है, हम जैसे लोग ऐसे परिवार से आते है जिनका साहित्य पृष्ठभूमि नहीं होता हैA हम जैसे लोगो को उत्कृष्ट साहित्यकार हय की दृष्टि से देखते है और हमारे द्वारा लिखे जाए काम को “कचरा साहित्य” के नाम से पुकारते हैA



जब पहली बार इस शब्द को सुना तो मन अन्दर से विचलित हो गया ये सोचकर की कैसे कोई किसी के लेखन को कचरे जैसा रद्दी समझ सकता है, पर बात इतनी छोटी नहीं है देश के हिंदी के महान लेखक जिनकी पहुँच अख़बार, प्रकाशन और सीमांत वर्ग के साथ है उनके लिए सफल लेखक बनना आसान होता है, बनस्पत हम जैसे ब्लॉगर,सोशल मीडिया के दूसरे मंच पर लिखने वाले लोगों के मुकाबले A

आपने भाई-भतीजा बाद के बारे में सुना होगा इस विषय पर फिल्म इंडस्ट्रीज़ में जोर-शोर से चर्चा होती रही है, भाई-भतीजाबाद सिर्फ फिल्म इंडस्ट्रीज़ में ही नहीं राजनीति, छोटे बड़े ऑफिस,इंडस्ट्री आदि जहाँ भी ये चल जाए देखने को मिल जाता हैA कभी-कभी लेखक वर्ग में भी  भाई-भतीजाबाद पाया जाता है, हर उस लेखक को सहरना और प्रोत्साहन मिल जाता हैA

जो किसी नमी व्यक्ति या परिवार से तालुक रखते हैA हम जैसे लोग ब्लॉग,अखबार,पत्रिका और प्रकाशन ऑफिस के चक्की में अपना सर घुसाए परेशान होते रहते हैA




मैं इन महान साहित्यकारों से बस इतनी गुज़ारिश करना चाहती हूँ की साहित्य के आगे कचरा जैसा शब्द लगकर उसका अपमान न करें आप चाहे मुझे बेकार, घटिया दर्जे का कहा सकते हैA मगर साहित्य से हिंदी लेखकों के बीच पनप रहे भेदभाव की बू नहीं आनी चाहिए, देश में वैसे भी हिंदी पाठक बहुत कम है, जिन पाठकों को पढ़ने का शौक है वो भी अधिकतर अंग्रेजी से हिंदी में अनुवादित किताब पढ़ना पसंद करते हैA में इन महान साहित्यकारों से पूछना चाहती हूँ आज के मौजूदा समय में एक भी सफल हिंदी लेखक का नाम बता देA ये समय नहीं एक-दूसरे की आलोचना करने का ये समय है हिंदी साहित्य को उसके पाठकों तक पहुँचाने का A



रिंकी


Sunday, January 14, 2018

पतंग और डोर


पतंग
नापने आसमान का छोर
ज़मीन छोड उड़ चली
गगन की ओर
बांध अपने-आप को एक डोर

हवाओ पर सवार
मडराती, अपने-आप पर इतराती
उड़ रही चिडियों के संग
वो नीली- हरी पतंग

क्या हो अगर
टूट जाए डोर
आसमान से ज़मीन पर आ गिरे वो
मिट जाएगी हस्ती
बिखर जाएगा जीवन का हर उमंग

ये डोर है जो साँस की
खुद पर और अपनों पर विश्वास की
रिश्ते- नाते, सपने और ज़िन्दगी में विश्वास की
टूटे अगर तो पतंग और ज़िन्दगी
हो जाए खाक सी
ज़िन्दगी और पतंग हर वक़्त बंधे

डोर संग






रिंकी


Thursday, January 4, 2018

असली–नकली


पकड़ो-पकड़ो, चोर–चोर उस औरत के गले का चैन खींच रहा है पकड़ो उसे, माता जी आप ठीक तो है ना I अरे खींच क्यूँ रहा है ले मैं ही इसे उतार कर दे देती, लेता जा माता जी आप ये क्या कहा रही है?

अरे बेटा नकली है, वो जोर से चिल्लाई लेता जा नकली माल,  आगे जा कर उस बाइक सवार से चैन फ़ेक दी, औरत ने दौड़ कर चैन उठा लिया और फिर अपने गले में पहन लिया, अरे माता जी आप क्यूँ परेशान होती है नकली चैन के लिए
वो बोली, तुझे क्या मैं पागल देखती हूँ? जो नकली सोने की चैन पहनुगीI



वो देर तक सोचता रहा नकली और असली के बारे में....




रिंकी

मेहरम

चुप ने ऐसी बात कही खामोशी में सुन  बैठे  साथ जो न बीत सके हम वो अँधेरे चुन बैठे कितनी करूं मैं इल्तिजा साथ क्या चाँद से दिल भर कर आँखे थक गय...